विश्व में केवल एक ही धर्म है सनातन। बाकी सब उसमें से निकले हुए छोटे छोटे पंथ हैं, जो या तो विचारधारा मतभेद की वजह से या किसी द्वेष भावना से उद्गम हुए है और उनमे से अधिकतर सनातन विरोधी हैं। सनातन जियो और जीने दो के ईश्वरीय सिद्धांत पर आधारित है। जहाँ ये मानना है कि ईश्वर की समस्त रचना जल, थल, आकाश में जिस किसी भी रूप में है वो ईश्वर को ही समर्पित है और उन्ही की प्रसन्नता के लिए समर्पित है। सनातन में किसी भी जीव या वस्तु का जड़ से उन्नमूलन नहीं किया जाता और न ही किसी की हत्या का प्रारब्ध भी किसी दूसरे को नियत किया गया है। इसका केवल एक ही अपवाद है कि वह व्यक्ति राक्षस प्रवत्ति का हो और सनातन की जड़ मूल पर प्रहार कर रहा हो। ऐसे राक्षस प्रवत्ति के जीव का उन्मूलन करना आदिकाल से ही सनातन के वैचारिक और व्यावहारिक सिद्धांतो में एक मुख्य सिद्धांत है, क्यूंकि इस तरह के राक्षस हर युग में हुए हैं। इसी सिद्धांत के प्रारूप में श्री राम ने समस्त राक्षस जाति, जो सनातन विचारों के उन्नमूलन में कार्यरत थे, उनका संहार किया। श्री कृष्ण भगवान ने भी समस्त मानव जाति को इस बात का ज्ञान कराया कि जो व्यक्ति सनातन विचारधारा के उन्मूलन के लिए कार्यरत है उसका संहार आवश्यक है। इसी संदर्भ में सनातन शिक्षा का है एक मूल मंत्र ‘ अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तदैव च।’ अर्थात: अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है। किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है। इसीलिए सब सनातनियों के लिए ये आवश्यक है कि वो जाति, कर्म, क्षेत्र, भाषा या किसी और वैचारिक भिन्नता का परित्याग कर केवल और केवल मात्र सनातनी के रूप में एकत्रित होऐं और वर्तमान स्थिति के अनुरूप इस पवित्र धरा पर न केवल राक्षस प्रवत्ति के व्यक्तियों की विचारधारा के उन्नमूलन पर कार्यरत हों, पर साथ ही साथ समस्त सनातनियों की समस्त रूप से रक्षा करने के लिए भी प्रतिबद्ध हो जाएं अन्यथा अधिक समय व्यर्थ हो जाने के उपरांत केवल पश्चाताप ही करने को रह जाएगा।
विश्व में पूर्व लगभग एक सहस्त्र वर्षो में किस तरह से सनातन विचार और व्यवहार का हनन हुआ है वो सबको ज्ञात है। इसमें राक्षसों ने करोड़ो सनातनी परिवारों को उजाड़ दिया गया था। अनगिनत पुरुषों और मासूम बच्चों का वध किया गया और स्त्रियों का हर प्रकार से हनन हुआ। इसका मूलतः कारण सनतानियों का धर्म के लिए एकबद्ध न हो कर अपने अपने स्वार्थ सिद्धीवश विभाजित होना था। ये स्थिति अब अगर जड़ से ठीक नहीं की गयी तो आप सब निश्चिंत मानिये कि निकट भविष्य में आप लोग भी अपने धन, प्रतिष्ठा, चरित्र, परिवार, सम्पंदा, ज्ञान, इत्यादि समस्त को उजड़ते हुए देखेंगे। कोई दूसरा व्यक्ति या राज्य सरकार आपकी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए नहीं आयेंगे। आप सब को आज ही अपने को समस्त रूप से सनातन समाज की तन, मन और धन से संगठित होकर, सनातनियों के जीवन, धन, परिवार और बहनों कि प्रतिष्ठा, मान, सम्मान की सुरक्षा करनी है। अगर हम विभिन्न विचारों और स्वार्थी नेताओ की बातों के कारण बंटे रहेंगे तो सनातन के जड़ से उन्नमूलन की तिथि बहुत अधिक विलंब पर नहीं है। हम सबको भलीभाँति यह भी ज्ञात है कि हमारे भारतवर्ष में अधिक़तर राजनैतिक दल पावन सनातन को जड़ से उन्नमूल करने के लिए प्रतिबद्ध है और स्पष्ट रूप से अपनी इस प्रतिज्ञा का प्रचार भी कर रहे हैं। यहाँ तक कि वो हिन्दुओं को अपने सार्वजनिक भाषण में राष्ट्र द्रोही भी मानते हैं। जबकि सत्य में यह सब विदेशी प्रभाव में स्वार्थ सिद्धी में पूर्णतय रत हैं। वह स्वयं भी राक्षस प्रवत्ति के हैं और सभी ऐसे राक्षस प्रवत्ति के व्यक्तिओं को समस्त प्रकार का आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक, राजनीतिक इत्यादि प्रलोभन एवं प्रोत्साहन देकर सनातन के उन्नमूलन के लिए उकसा रहे है। दुखः की बात यह है कि हम अधिक़तर सनातनी अपने छोटे और तुरंत स्वार्थ और सुख के लिए अपनी आने वाली पीढियों के सर्वनाश ही नहीं पर हमारे आदरणीय पूर्वजों के सनातन और आपकी वैचारिक रक्षा के बलिदान को हमेशा के लिए मिट्टी में मिलानें की ओर अग्रसर हैं। इसी सनातन सिद्धांतो के पालन के लिए श्री हनुमान बालाजी मंदिर विवेक विहार नई दिल्ली के परिसर में सनातन शास्वत के प्रति कार्यरत होने के लिए एक मंच स्थापित किया गया है जो आप लोगो को उपरोक्त विचारों को अवगत और पालन कराने की क्रिया सहयोग करने के लिए कार्यरत है। अधिक सूचना व सनातन शास्वत प्रचार और पालन कार्य प्रणाली के बारे में जानने के लिए श्री हनुमान बालाजी मंदिर विवेक विहार नई दिल्ली समिति के कार्यालय में संपर्क करें।